यदि आप बाल विकास की अवधारणा एवं इसकाअधिगम से संबंध को गहराई से जानना चाहते है तो आप इसे Article को अंत तक जरूर पढ़े । जिससे आपके सभी प्रश्नो के उत्तर आपको मिल सके । साथ ही आपको यह जानकारी अन्य शिक्षक प्रात्रता परीक्षा जैसे CTET , MPTET, UPTET में भी आपकी बहुत मदद करेगे ।
बाल विकास की अवधारणा
बाल विकास से तात्पर्य बालको के सर्वागीण विकास से है । बाल विकास का अध्ययन करने के लिये 'विकासात्मक मनोविज्ञान' की एक अलग शाखा बनाई गयी जो बालकों के व्यवहारों का अध्ययन गर्भावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त तक करती है । परन्तु वर्तमान समय में इसे 'बाल विकास' में परिवर्तित कर दिया गया है । जबकि बाल विकास के अंतर्गत उन सभी तथ्यों का अध्ययन किया जाता है । जो बालकों के व्यवहारों को एक निश्चित दिशा प्रदान कर विकास में सहायता प्रदान करते है ।
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क्रो एण्ड क्रो के अनुसार
बाल विकास वह विज्ञान है जो बालक के व्यवहार का अध्ययन गर्भावस्था से मृत्युपर्यन्त तक करता है ।
हरलॉक के अनुसार
बाल विकास मनोविज्ञान की वह शाखा है जो गर्भाधान से लेकर मृत्युपर्यन्त तक होने वाले मनुष्य के विकास की विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करता है।
बाल विकास की अवधारणा एवं इसका अधिगम में संबंध |
बाल विकास की आवश्यकता
- बालको के मनोरचना की जानकारी प्राप्त करने हेतु ।
- बाल विकास प्रक्रिया को समझाने में सहायक ।
- बाल निर्देशन व परामर्श में सहायक ।
- बालको के प्रति भविष्यवाणी करने में सहायक ।
- बाल व्यवहार का मार्गानतरीकरण व नियन्त्रण में सहायक ।
बाल विकास के क्षेत्र
- बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन ।
- बाल विकास के विभिन्न पहलुओ का अध्ययन ।
- बालको की रूचियों का अध्ययन ।
- बालको के व्यक्तित्व का मूल्यांकन ।
- बालको की वैयक्तिक भिन्नताओ का अध्ययन ।
बाल विकास के अध्ययन का महत्व
- विकासात्मक क्रियाओं का ज्ञान प्राप्त होना ।
- बाल पोषण विधियों का ज्ञान होना ।
- व्यक्तिगत विभिन्नताओं की जानकारी प्राप्त होना ।
- विकास की अवस्थाओ का ज्ञान होना ।
- बालको के प्रशिक्षण तथा शिक्षा में उपयोगी होना ।
- बालको के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक ।
बाल विकास की अवस्थाऍं
- शैशवावस्था ( जन्म से 5 या 6 वर्ष तक )
- बाल्यावस्था ( 5 या 6 वर्ष से 12 वर्ष तक )
- किशोरावस्था ( 12 वर्ष से 18 वर्ष तक )
- प्रौढ़ावस्था ( 18 वर्ष के पश्चात )
- गर्भकालीन अवस्था (गर्भधारण से जन्म तक )
- शैशवावस्था (जन्म से चौदह दिनों की अवस्था तक )
- बचपनावस्था ( दो सप्ताह के बाद से दो वर्ष तक )
- पूर्व बाल्यावस्था ( तीन वर्ष से छ: वर्ष तक )
- उत्तर बाल्यावस्था (छ: वर्ष से चौदह वर्ष तक )
- पूर्व किशोरावस्था (11 वर्ष से 17 वर्ष तक )
- किशोरावस्था ( 17 से 21 वर्ष तक )
- प्रौढ़ावस्था ( 21 वर्ष से चालीस वर्ष तक )
- शैशवाावस्था (जन्म से लेकर दो वर्ष तक )
- प्रारम्भिक बाल्यावस्था ( दो वर्ष से 5 वर्ष तक )
- मध्य बाल्यावस्था (बालक 6 से 12 तथा बालिका 6 से 10 वर्ष )
- उत्तर बाल्यावस्था (बालक 13 से 14 वर्ष तक तथा बालिका 11से 12 वर्ष तक )
- प्रारम्भिक कोशरावस्था ( बालक 15 से 16 वर्ष तक बालिका 12 से 14 वर्ष तक )
- मध्य किशोरावस्था (बालक 17 से 18 वर्ष तक बालिका 15 से 17 वर्ष तक)
- उत्तर किशोरावस्था (बालक 19 से 20 वर्ष तक बालिका 18 से 20 वर्ष तक )
- प्रारम्भिक प्रौढ़ावस्था ( 21 से 37 वर्ष तक )
- मध्य प्रौढ़ावस्था (35 से 49 वर्ष तक )
- प्रारम्भिक वृद्धावस्था ( 50 से 64 वर्ष तक )
- वृद्धावस्था ( 75 से आगे )
- शैशवावस्था
- बाल्यावस्था
- किशोरावस्था
बालक के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अधिगम से संबंध
शैशवावस्था का अधिगम से संबंध
- जन्म से 6 वर्ष तक की अवस्था को शैशवावस्था कहा जाता है इसमें जन्म से 3 वर्ष तक बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास तेजी से होता है ।
- शैशवावस्था में अनुकरण एवं दोहराने की तीव्र प्रवृत्ति बच्चों में पाई जाती है ।
- इसी काल में बच्चों का समाजीकरण भी प्रारम्भ हो जाता है ।
- इस काल में जिज्ञास की तीव्र प्रवृत्ति बच्चों में पाई जाती है ।
- मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि से यह काल भाषा सीखने की सर्वोतम अवस्था है
- यह काल शिक्षा की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है ।
बाल्यावस्था का अधिगम से संबंध
- 6 वर्ष से 12 वर्ष तक की अवस्था को बाल्यावस्था कहा जाता है ।
- बाल्यावस्था के प्रथम 6 से 9 वर्ष बालको की लम्बाई एवं भार दोनों अत्यधिक मात्रा में बढ़ता है
- इस काल में बच्चें में चिन्तन एवं तर्क शक्तियों का विकास हो जाता है ।
- इस काल में बाद बच्चों पढ़ाई में रूचि लेने लगते है ।
- शर्म तथा गर्व जैसी भावना का विकास इसी अवस्था में होता है ।
- शैशवावस्था में बच्चें जहॉ बहुत तीव्र गति से सीखते है वही बाल्यावस्था में सीखने की गति मंद हो जाती है । किन्तु उसके सीखने का क्षेत्र शैशवावस्था की तुलना में विस्तृत हो जाता है ।
किशोरावस्था का अधिगम से संबंध
- 12 वर्ष से 18 वर्ष तक की अवस्थ को किशोरावस्था कहा जाता है ।
- यह वह समय होता है जिसमें व्यक्ति बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर बढ़ता है
- किशोरावस्था में बच्चें अपने समवयस्क समूह के सक्रिय सदस्य हो जाते है ।
- इसअवस्था में किशोराे की लम्बाई एवं भार दोनो में वृद्धि होती है । साथ ही मॉसपेशियों में भी वृद्धि होती है ।
- इस काल में प्रजन्न अंग विकसित होने लगते है एवं उसकी काम की पृवत्ति जाग्रत होती है ।
- यौन समस्या इस अवस्था की सबसे बडी समस्या होती है ।
- इस अवस्था में नशा या अपराध की ओर उन्मुख (बढ़ता) होने अधिक संभावना रहती है ।
- इस अवस्था में मित्र बनाने की प्रवृत्ति तीव्र होती है । इस तरह इस अवस्था में व्यक्ति के सामाजिक संबंधों में वृद्धि होती है ।