CTET : भाषा और विचार (language and though) चिंतन में संबंध, प्रकार , सिद्धांत एवं महत्‍व

 CTET : भाषा और विचार (language and though) - इस पोस्‍ट मे हम जानेगे कि भाषा क्‍या होती है विचार किसे कहते है तथा इन दोनो में क्‍या संबंध होता है । परिभाष , प्रकार , विशेषताऍं , पद , चरण , आदि को विस्‍तार से जानने का प्रयास करेगे मै आशा करता कि आप इस पोस्‍ट को अंत तक जरूर पढ़ेगे जिससे अपको सभी प्रश्‍नो के उत्तर अपको मिल पाएगे ।  MPTET / CTET / UPTET / STET / HTET / REET / 20021-22 EXAM 

CTET : भाषा और विचार (language and though) चिंतन  में संबंध, प्रकार , सिद्धांत एवं महत्‍व
CTET : भाषा और विचार (language and though) चिंतन  में संबंध, प्रकार , सिद्धांत एवं महत्‍व 


भाषा क्‍या है ?

भाषा अभिव्‍यक्ति विचार विनिमय का मानव निर्मित साधन है जो पैतृक सम्‍पत्ति न होकर बल्कि अर्जित सम्‍पत्ति है जिसे हर बालक अनुकरण एवं प्रयास द्वारा ग्रहरण करने की चेष्‍टा करता है । 

भाषा योग्‍यता केवल मनुष्‍यो में पाई जाती है जो विचारो के आदान प्रदान में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है इसीलिए विकासात्‍मक मनोविज्ञान की विभिन्‍न विषय वस्‍तुओ में भाषा विकास भी अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण है । 

 विश्‍वकोष के अनुार - भाषा ध्‍वनि प्रतीको या संकेतो की ऐसा मान्‍य व्‍यवस्‍था है जिसके द्वारा एक समूह के लोग आपस में विचार विनियम करते है 

हरलॉक के अनुसार - भाषा के तात्‍पर्य विचारो तथा अनुभूतियों का अर्थ व्‍य‍क्‍त करने वाले उन सभी साधनो से है जिसमें विचारो के आदान प्रदान के सभी पक्ष सम्मिलित है । 


  • भाषा जीवित प्रणियो की प्रकाशन का एक साधन है । 
  • मनुष्‍य जिस माध्‍यम से अपने विचारो एवं भावो को अभिव्‍यक्‍त करता है आदान प्रदान करता है उसे भाषा कहते है । 
  • भाषा सम्‍प्रेषण का सबसे सशक्‍त माध्‍यम है 
  • बालक भाषा बोलने से पहले समझना आरम्‍भ कर देता है 
Table of  content (toc)

    भाषा के प्रकार 

    1. मौखिक (सर्वाधिक उपयोगी ) 
    2. लिखित 
    3. सांकेतिक 

    भाषा की विशेषताऍं - 

    1. भाषा अभिव्‍यक्ति का एक सांकेतिक साधन है 
    2. भाषा पेतृक संपत्ति न होकर अर्जित संपत्ति है 
    3. भाषा व विचारो का गहरा सम्‍बन्‍ध है 
    4. भाषा का कोई अंतिम स्‍वरूप नही है 
    5. भाषा का अर्जन अनुकरण द्वारा होता है 
    6. संस्‍कृति व सभ्‍यता से जुडी होती है 
    7. गतिशील व परिवर्तन शील होती है 
    8. भाष कठिनता से सरलता की अग्रसर होती है 
    9. भाषा स्‍थूलता से सूक्ष्‍मता और प्रौढ़ता की ओर जाती है 
    10. भाषा संयोगावस्‍था से वियोगावस्‍था की ओर जाती है 

    भाषा विकास के सिद्धांत - 


    1. चॉमस्‍क का सिद्धांत 
      1. बालक में भाषा का गुण जन्‍म से पाया जाता है 
      2. वंशानुक्रम + वातावरण दोनो का योगदान होता है 
      3. बच्‍चे की पहली भाषा क्रंदन (रोना) होती है और फिर सांकेतिक भाषा में आता है । 
    2. बाण्‍डूरा का सिद्धांत - 
      1. बच्‍चा समाज के लोगो का अनुकरण के द्वारा ही भाषा सीखता है । 
    3. चैपनील , शार्ली , कर्टी वैलेन्‍टाइन का अनुकरण का सिद्धांत 
      1. बच्‍चे का जो भाषा विकास होता है वह अनुकरण के द्वारा होता है 
      2. यदि बच्‍चे के सामने दोषयुक्‍त भाषा का प्रयोग किया जा रहा है तो बालक भी दोषयुक्‍त भाषा सीखता है । 
    4. परिपक्‍वता का सिद्धांत - 
      1. परिपक्‍वता का तात्‍पर्य है कि भाषा अवयवों एवं स्‍वरों पर नियंत्रण होना । 
      2. बोलने के लिए जिभा , तालू , मूर्द्धा का परिपक्‍व होना आवश्‍यक है तो भाषा पर नियंत्रण होता हे और अभिव्‍यक्ति अच्‍छी होती है । 
    5. अनुबंधन का सिद्धांत - 
      1. शब्‍दों और भाषा को सीखने के लिए पहले व्‍यक्ति व वस्‍तु का सामने होना आवश्‍यक है । 


    भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक 

    1. शारीरिक परिपक्‍वता 
    2. पारिवारिक संबंध 
    3. सामाजिक आर्थिक स्‍तर 
    4. बुद्धि 
    5. स्‍वास्‍थ्‍य 
    6. प्रेरणा एवं निर्देशन 
    7. सामाजिक अधिगम के अवसर 
    8. लिंग 
    9. विद्यालय 
    10. सम समूह 
    11. मीडिया 
    12. बहुभषिक्‍ता 

    भाषा सीखने के  साधन 

    1. अनुकरण 
    2. खेल 
    3. कहानी सुनना 
    4. वार्तालाप 
    5. प्रश्‍नोत्तर 

    भाषा के भाग / धटक 


    भाषा के चार भाग / घटक होते है । 
    1. स्‍वनिम - छोटे छोटे वर्ण को सीखता है जिसका कोई अर्थ नही होता उसे स्‍वनिम कहते है यह भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है 
    2. रूपिम - इसके बाद बच्‍चा छोटे छोटे शब्‍द सीखता है 
    3. वाक्‍य विन्‍यास - भाषा के नियम सीखता है 
    4. अर्थविन्‍यास - वाक्‍य के सारे शब्‍द अर्थ पूर्ण होने चाहिए यही बताता है। 


    चिंतन ( विचार ) क्‍या है ? 


    चिंतन विचार करने की वह मानसिक प्रक्रिया है चिंतन का संबंध संज्ञानात्‍मक पक्ष से है जो किसी समस्‍य के उत्‍पन्‍न होने से आरम्‍भ होती है और उसके अंत तक चलती है । 

    मानसिक प्रक्रिया के अंतर्गत अनुमान करना तर्क करना , कल्‍पना करना , निर्णय लेना , समस्‍या समाधान ओर रचनात्‍मक आदि सम्मिलित है। 


    रॉस के अनुसार - चिंतन मानसिक क्रिया का ज्ञानात्‍मक पहलू है ।



    चिंतन के प्रकार 


    NCERT  के अनुसार चिंतन दो प्रकार का होता है। 
    1. स्‍वली चिंतन 
    2. यथार्थवादी चिंतन 
      1. अभिसारी चिंतन 
      2. अपसारी चिंतन 
      3. आलोचनात्‍मक चिंतन 

    1. स्‍वली चिंतन – दिवास्‍वप्‍न देखना , कल्‍पना करना अर्थात काल्‍पनिक विचारों व इच्‍छाओं की अभिव्‍यक्ति करना    उदा – झूठी कल्‍पना करके , स्‍वप्‍न देख करके सबको बताना  
    2. यथार्थवादी चिंतन – वास्‍तविकता से संबंधित चिंतन   जैसे – पंखा लते चलते रूक जाता है तो विचार करना कि क्‍या कारण है जिससे पंख रूक गया है 
      1. अभिसारी चिंतन – तथ्‍यों के आधार पर निष्‍कर्ष निकालना , बंद अंत वाले प्रश्‍न पूछना  प्रश्‍न का एक उत्‍तर हो अन्‍त में आ के रूक जाना   जैसे 4+4 =8 , उत्‍तरप्रदेश की राजधानी – लखनऊ 
      2. अपसारी चिंतन / सृजनात्‍मक चिंतन – विविध प्रकार की सोच, मुक्‍त अंत वाले प्रश्‍न पूछना । इसके अनेक उत्‍तर हो सकते है  जैसे – उत्‍तर प्रदेश की विशेषताएं क्‍या है । 
      3. आलोचनात्‍मक चिंतन  - गुण और दोष को देखते हुए किसी बात को स्‍वीकार करना । 

    चिंतन के प्रकार (सामान्‍य प्रकार) 

    1. प्रत्‍यक्षात्‍मक चिंतन / मूर्त चिंतन – 
      1. यह चिंतन का सबसे निम्‍न प्रकार है 
      2. बच्‍चा देखी हूई चीज पर चिंतन करते है 
    2. प्रत्‍ययात्‍मक चिंतन / अमूर्त चिंतन 
      1. यह सबसे प्रचलित चिंतन है 
      2. एक बार किसी बस्‍तु को देख लिया और उसके न होने पर किया गया चिंतन 
    3. कल्‍पनात्‍म्‍क चिंतन / सृजनात्‍म्‍क चिंतन – 
      1. किये गये चिंतन को सृजनात्‍मक रूप देना 
      2. यह चिंतन सृजनात्‍मक बालक ज्‍यादा करते है 
    4. तार्किक चिंतन -
      1. यह सर्वश्रेष्‍ठ या सर्वोच्‍च्‍ चिंतन कहते है 
      2. जॉन डी वी मे इसे विचारात्‍मक चिंतन कहा है 
      3. समस्‍या के आने पर ही यह चिंतन शूरू होता है । 


    चिंतन के सोपान / पद 

    1. समस्‍या का उत्‍पन्‍न होना 
    2. आकड़ो एवं तथ्‍यो का संकलन करना 
    3. निष्‍कर्ष निकालना 
    4. निष्‍कर्षो की जॉच करना 

    चिन्‍तन के सूचना प्रक्रमण सिध्‍दांत के चरण  

    1. पूर्व प्रक्रमण 
    2. श्रेणीकरण 
    3. प्रतिक्रिया चयन 
    4. प्रतिक्रिया क्रियान्‍वयन 

    चिंतन की विशेषताऍ  

    1. चिंतन एक मानसिक प्रक्रिया हे 
    2. चिंतन मस्तिष्‍क का  एक ज्ञानात्‍मक पक्ष  है 
    3. समस्‍या के समाधान  में सहायक है 
    4. इससे मस्तिष्‍क  में एकाग्रता आती है 
    5. ध्‍यान केन्द्रित करने की क्षमता विकासित होती है 
    6. मानसिक विकास होता है 
    7. चिंतन से अनावश्‍यक क्रियाऍ कम होती है 
    8. बालक के शैक्षिक विकास में महत्‍वपूर्ण है 
    9. चिंतन से किसी भी वस्‍तु प्रत्‍यक्ष किय जा सकता है 
    10. किसी भी क्रिया  को पूर्ण किया जा सकता है । 
     




    हम ने सीखा - इसे पोस्‍ट में हम ने देखा कि भाष और विचार किसे कहते है  परिभाष , प्रकार , विशेषताऍं , पद , चरण , आदि को विस्‍तार से जाना अगर आपको यह पोस्‍ट अच्‍छी लगी हो तो अपने दोस्‍तो के साथ जरूर शेयर करे । और  comment box   में लिखकर जरूर बताऍं ।  

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