बाल विकास की विभिन्न अवस्थाऍं ( Different stages of child development ): आज की पोस्ट में जानने वाले है कि बाल विकास की कितनी अवस्थाऍ होती है और बाल विकास का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताऍं सभी के बारे में विस्तार में चर्चा करने वाले है । अगर आप इस पोस्ट को अंत तक पढ़ते है तो आपको आपके सभी प्रश्नो के उत्तर मिल जाएगें ।
बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं को विभिन्न वैज्ञानिकों ने विकास की विभिन्न अवस्थाओं को भिन्न-भिन्न प्रकार से वर्गीकृत किया है जिसे अग्रलिखित प्रकार से समझा जा सकता है ।
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बाल विकास की विभिन्न अवस्थाऍं
बाल विकास की अवस्थाओं को विभिन्न विद्वानों द्वारा निम्नअवस्थाओं मे बॉट गया है ।
रॉस के अनुसार
- शैशवावस्था ( जन्म से 5 या 6 वर्ष तक )
- बाल्यावस्था ( 5 या 6 वर्ष से 12 वर्ष तक )
- किशोरावस्था ( 12 वर्ष से 18 वर्ष तक )
- प्रौढ़ावस्था ( 18 वर्ष के पश्चात )
हरलॉक के अनुसार
- गर्भकालीन अवस्था (गर्भधारण से जन्म तक )
- शैशवावस्था (जन्म से चौदह दिनों की अवस्था तक )
- बचपनावस्था ( दो सप्ताह के बाद से दो वर्ष तक )
- पूर्व बाल्यावस्था ( तीन वर्ष से छ: वर्ष तक )
- उत्तर बाल्यावस्था (छ: वर्ष से चौदह वर्ष तक )
- पूर्व किशोरावस्था (11 वर्ष से 17 वर्ष तक )
- किशोरावस्था ( 17 से 21 वर्ष तक )
- प्रौढ़ावस्था ( 21 वर्ष से चालीस वर्ष तक )
कोल के अनुसार
- शैशवाावस्था (जन्म से लेकर दो वर्ष तक )
- प्रारम्भिक बाल्यावस्था ( दो वर्ष से 5 वर्ष तक )
- मध्य बाल्यावस्था (बालक 6 से 12 तथा बालिका 6 से 10 वर्ष )
- उत्तर बाल्यावस्था (बालक 13 से 14 वर्ष तक तथा बालिका 11से 12 वर्ष तक )
- प्रारम्भिक कोशरावस्था ( बालक 15 से 16 वर्ष तक बालिका 12 से 14 वर्ष तक )
- मध्य किशोरावस्था (बालक 17 से 18 वर्ष तक बालिका 15 से 17 वर्ष तक)
- उत्तर किशोरावस्था (बालक 19 से 20 वर्ष तक बालिका 18 से 20 वर्ष तक )
- प्रारम्भिक प्रौढ़ावस्था ( 21 से 37 वर्ष तक )
- मध्य प्रौढ़ावस्था (35 से 49 वर्ष तक )
- प्रारम्भिक वृद्धावस्था ( 50 से 64 वर्ष तक )
- वृद्धावस्था ( 75 से आगे )
शिक्षा की दृष्टि से से सिर्फ 3 अवस्थाऍं ही महत्वपूर्ण है
- शैशवावस्था
- बाल्यावस्था
- किशोरावस्था
इसलिए शिक्षा मनोविज्ञान के अंतर्गत इन्ही तीन प्रमुख अवस्थाओं का अध्ययन मुख्यत: किया जाता है हम भी इन्ही अवस्थााओ को विस्तार से जानेगे ।
शैशवावस्था
जन्म से 6 वर्ष तक की अवस्था 'शैशवावस्था' कहलाती है । इस अवस्था को समायोजन की अवस्था भी कहा जाता है । क्योकि इस अवस्था में बालक नितान्त असहाय होता है ।
अत: उसकी उचित देखभाल द्वारा नये वातावरण के साथ सामाजस्य स्थापित कराने का कार्य उसके माता पिता के द्वारा किया जाता है ।
शैशवावस्था में शिशु शारीरिक एवं मॉसिक दोनो दृष्टि से अपरिपक्व होता है । तथा अपनी अवश्यकताओ की पूर्ति के लिए वह दूसरों पर आश्रित होता है ।
शेशवावस्था को 'बालक का निर्माण काल' व 'जीवन का सबसे महत्वपूर्ण काल' कहा जाता है ।
शैशवावस्था की परिभाषा
फ्रायड के अनुसार - व्यक्ति को अपने भावी जीवन में जो कुछ भी बनना होता है । उसका निर्धारण चार -पॉच साल की आयु में ही हो जाता है ।
क्रो एण्ड क्रो के अनुसार - बीसवी शतााब्दी को बालक की शताब्दी कहा जाता है ।
ऐडलर के अनुसार - बाल के जन्म के कुछ माह बाद ही यह निश्चित किया जा सकता है कि जीवन में उसका क्या स्थान है ।
गुडएनफ के अनुसार - व्यक्ति का संम्पूर्ण जीवन में जितना भी मासिक विकास होता है उसका आधा तीन वर्ष की आयु तक हो जाता है ।
शैशवावस्था की प्रमुख विशेषताऍं
शेशवावस्था की विशेषताऍ निम्न लिखित है
1. जिज्ञासू प्रवृत्ति - बालक विभिन्न बातो और वस्तुओ के बारे में क्यों और कैसे के प्रश्न पूछता है ।
2. सीखने की प्रक्रिया में तीव्रता - बालक प्रथम 6 वर्षो में बाद के 12 वर्षो से दूना सीख लेता है ।
3. शारीरिक विकास में तीव्रता - शैशवावस्था के प्रथम तीन वर्षो में शिशु का शारीरिक विकास अति तीव्र गति से होता है । जिसमे उसके भार और लंबाई में वृद्धि होती है तथा 3 वर्षो के बाद विकास की गति धीमी हो जाती है ।
4. मांसिक क्रियाओं की तीव्रता - तीन वर्ष की आयु तक शिषु की लगभग सभी मासिक शक्तियॉं जैसे -ध्यान, स्मृत्ति, कल्पना, संवेदना, आदि कार्य करने लगती है ।
5. दूसरो पर निर्भरता - जन्म के बाद कुछ समय तक शिशु को अपने भोजन और अन्य शारीरिक आवश्यकताओं के साथ-साथ प्रेम और सहानुभूति पाने के लिए भी दूसरो पर निर्भर रहता पड़ता है
6. आत्म-प्रेम की भावना - शैशवावस्था में शिशु के अंदर आत्मप्रेम की भावना बहुत प्रबल होती है वह अपने माता पिता भाई -बहन आदि का प्रेम प्राप्त चाहता है और वह यह भी चाहता है कि प्रेम उसके अलावा किसी और को न मिलें ।
7. संवेगो का प्रदर्शन - ब्रिजेज ने अपने अध्ययनो के आधार पर सिद्ध किया कि जनमके समय शिशु में उत्तेजना के अलावा कोई दूसरा संवेग नही होता है किन्तु दो वर्ष की आयु तक पहुचने पर बालक में लगभग सभी संवेगो का विकास हो जाता है
8. अनुकरण द्वारा सीखने की प्रवृत्ति - अनुकरण द्वारा सीखने की प्रवृत्ति होती है वह अपने माता पिता भाई बहन आदि के कार्यो और व्यवहार का अनुकरण करता है
9. दोहराने की प्रवृत्ति - बालक अपने माता पिता को जिस तरह बोलते या काम करते देखता है तो वह भी उसको दोहराने की कोशिश करता है ।
10. मूलप्रवृत्तियो पर आधारित व्यवहार - शिशु के द्वारा दर्शाये जाने वाले सारे व्यवहार जैसे -भूख , क्रोध, पीडा, आदि उसके मूलप्रवृत्तियो पर आधारित होते है यदि शिशु को भूख लगती है तो उसे जो भी वस्तु मिलती है उसी को अपने मुहँ में रख लेता है
बाल्यावस्था
शैशवावस्था के बाद 6 से 12 वर्ष तक की अवस्था को बाल्यावस्था के नाम से जाना जाता है । मनोवैज्ञानिको ने इस अवस्था को मानव ' विकास का अनोखा काल ' कहा है ।
बाल्यावस्था में बालक पहले 3 वर्षो में (6 से 9 वर्ष की उम्र तक ) बहुत तेजी से बढ़ता है लेकिन बाद के 3 वर्षो में ( 9 से 12 वर्ष की उम्र तक)धीमी गति से बढ़ता है अत: इस आधार पर बाल्यावस्था के भी दो स्तर होते है ।
- पूर्व बाल्यावस्था - 6 वर्ष से 9 वर्ष तक
- उत्तर बाल्यावस्था - 9 वर्ष से 12 वर्ष तक
बाल्यावस्था की परिभाषा
कोल व ब्रूस के अनुसार - वास्तव में माता पिता के लिए बाल-विकास की इस अवस्था को समझना कठिन है ।
रॉस के अनुसार – बाल्यावस्था को मिथ्या परिपक्वता या छद्म काल कहा है ।
स्ट्रेग के अनुसार – शायद ही ऐसा कोई खेल हो जिसे 10 वर्ष का बालक ना खेला हेा
किलपेट्रिक के अनुसार – बाल्यावस्था को प्रतिध्दन्दात्मक सामाजिकरण का काल कहा जाता है
बाल्यावस्था की विशेषताऍं
1. शारीरिक व मानसिक स्थिरता - 6 या 7 वर्ष की आयु के बाद बालक के शारीरिक और मासिक विकास में स्थिरता आ जाती है । यह स्थिरता उसकी शारीरिक व मासिक शक्तियों को दृढ़ता प्रदान करती है
2. मानसिक योग्यता में वृद्धि - बाल्यावस्था में बालक की मानसिकयोग्याताओ में निरंतर वृद्धि होने लगती है वह विभिन्न बातो के बारे में तर्क और विचार करने लगता है
3. जिज्ञासा की प्रबलता - बाल्यावस्था में बालक की विज्ञासा विशेष रूप से प्रबल होतती है वह जिन वस्तुओ के संपर्क में आता है उनके बारे में प्रश्न पूछॅकर हर तरह की जानकारी प्राप्त करना चाहता है
4. वास्तविका जगत से संबंध - बाल्यावस्था में बालक शैशवावस्था के काल्पनिक जगत का परित्याग करके वास्तविक जगत में प्रवेश करता है । वह उसकी प्रत्येक वस्तु से आकर्षित होकर उसका ज्ञान प्राप्त करना चाहता है
5. रचनात्मक कार्यो मे आनंद- बाल्यावस्था में बालक रचनात्मक कार्यो में अधिक आनंद की प्राप्ति करते है जैसे बगीचे मे कार्य करना , औजारो से लकउी की वस्तुए बनाना
6. सामाजिक गुणों का विकास - इस काल में बालक मै सामाजिक गुण जेसे सहयोग ,सदभावना , सहनशीलता ,आज्ञाकारिता आदि आने लगते है
7. नैतिक गुणो का विकास - बाल्यावस्था में बालको में अच्दे बरे के ज्ञान का एवं न्यायपूर्ण व्यवहार , इमानदारी और सामाजिक भावना का विकास होने लगता है ।
8. बहिर्मुखी व्यक्तित्व का विकास - बाल्यावस्था में उसका व्यक्तितव बर्हिमुखी होने लगता है क्योकि बाह्य जगत में उसकी रूचि उत्पन्न हो जाती है ।
9. संग्रह करने की प्रवृत्ति - बाल्यावस्था में बालक में संग्रह करने की प्रवृत्ति जग्रत होने लगती है वह कॉच की गोलियॉ , टिकटो , पत्थर के टुकडों आदि का संग्रह करता है
10. समलिगी मित्रता - बाल्यावस्था में बालक और बालिका अपने समलिगी मित्रो से मित्रता करना पंसद करता है ।
किशोरावस्था
किशोरावस्था , बाल्यावस्था के बाद आती है यह अवस्थाा 12 वर्ष की आयु से प्रारंभ होती हे तथा 18 वर्ष की आयु तक चलती है मनोवैज्ञानिको ने इसे संघर्ष , तनान, तुफान , विरोध एवं परेशानी का काल कहा है अत: इस अवस्था मे किशोरो का सही से मार्गदर्शन करने की आवश्यकता रहती है
इस काल में प्रजन्न क्षमता का विकास अत्याधिक होता है तथा इसे शारीरिक काल का सर्वश्रेष्ठ काल माना जाता है
सामान्यता बालको की किशोरावस्था लगभग 13 वर्ष की आयु मै और बालिकाओ की लगभग 12 वर्ष की आयु में आरंभ होती है ।
किशोरावस्था की परिभाषा
स्टनले हॉल के अनुसार - किशोरावस्था बड़े संघर्ष तनाव तूफान तथा विरोध की अवस्था है
जरशील्ड के अनुसार - किशोरावस्था में है जिसमें विचारशील व्यक्ति बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर संक्रमण करता है
किल पेट्रिक – इस बात पर कोई मतभेद नही हो सकता कि किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल या कठिन सीढी है
क्रो एण्ड क्रो – किशोर ही वर्तमान की शक्ति और भावी शक्ति है आशा को प्रदर्शित करता है
किशोरावस्था की विशेषताऍं -
1. शारीरिक विकास में परिवर्तन - किशोरावस्था को शारीरिक विकास का सर्वश्रेष्ठ काल माना जाता है इस काल में किशोरावस्था के शरीर में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं जैसे भार और लंबाई में तीव्र वृद्धि
2. मानसिक विकास में परिवर्तन - किशोरावस्था एवं किशोरावस्था में मानसिक क्षमताओं का पूर्ण विकास हो जाता है बुद्धि की स्थिरता तर्कशक्ति की प्रतियोगिता विचार में परिपक्वता कल्पना शक्ति में बाहुल्यत आदि
3. काम भावना की परिपक्वता - इस अवस्था में कामेन्द्रियो का पूर्ण विकास हो जाता है तथा किशोरावस्था एवं बाल्यावस्था की सुपुष्ट का भावना इस समय अपने पूर्ण यौवन एवं पूर्ण पराकाष्ठा पर होती है
4. आत्मसम्मान की भावना - किशोरावस्था में आत्मसम्मान के भाव की स्वत: ही वृद्धि हो जाती है किशोर समाज के वही स्थान प्राप्त करना चाहते हैं जो बड़ो को प्राप्त है
5. व्यक्तिगत गुण - किशोरावस्था एक नया जन्मे है इसी अवस्था में उच्चतर और श्रेष्ठ पर मानवीय गुण प्रकट होते हैं
6. अस्थिरता -अस्थिरता का अर्थ है निर्णय में चंचलता । किशोरावस्था मे लिए गये निर्णय स्थिरता से हर एक होते हैं किशोर और किशोरियॉ शारीरिक शक्ति से वशीभूत होकर निर्णय लेते हैं
7. किशोरापराध की प्रवृत्ति का विकास - आशाओ का पूरा न होना , असफलता , प्रेम की तीव्र लालसा और सदम्भ साहस आदि विशेषताओ के कारण किशोर स्वयं को अपराधी मनोवृत्ति का बना लेते है ।
8. स्वतंत्रता व विद्रोह की भावना - किशोर में शारीरिक और मानसिक स्वतंत्रता की प्रबल भावना होती है बड़ों के आदेशों विभिन्न परंपराओं रीति-रिवाजों और अंधविश्वासों के बंधनों में ना बंद कर स्वतंत्र जीवन व्यतीत करना चाहते हैं
9. घनिष्ट व व्यक्तिगत मित्रता - किसी समूह का सदस्य होते हुए भी किशोर केवल एक या दो बालकों से घर से संबंध रखता है जो उसके परम मित्र होते हैं और जिन सेवक अपनी समस्याओं के बारे में स्पष्ट रूप से बातचीत करता है
19. व्यवहार में विभिन्नता - किशोरों में आवेलु और संभागों की बहुत प्रबलता होती है यही कारण है कि वह विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार का व्यवहार करता है
हम ने सीखा -
हम ने इस पोस्ट में बाल विकास की विभिन्न अवस्थाऍं ( Different stages of child development ) अर्थ , परिभाषा , एवं विशेषताऍं को अत्यधिक गहाराई से समझने का प्रयास किया आशा करता हॅू अगर आपने अंत तक अच्छे तरीके से पढ़ा होगा तो आपको समझ में जरूर आया होगा । यदि आपको यह जानकारी पंसद आयी हो तो अपने दोस्तो के साथ जरूर शेयर करे जो किसी शिक्षक पात्रता परीक्षा की तैयारी कर रहे हो ।