आकलन और मूल्‍यांकन (assessment and evaluation) क्‍या है , परिभाषा , प्रकार , आवश्‍यकता , विशेषताऍ , क्षेत्र एवं अंतर

आकलन और मूल्‍यांकन क्‍या है साथ ही आंकलन और मूल्‍यांकन की परिभाषा , विशेषताऍ , प्रकार आवश्‍यकता , क्षेत्र एवं महत्‍व अधिगम के लिए आकलनऔरअधिगम का अंतर
इस पोस्‍ट में हम जानने वाले है कि आकलन और मूल्‍यांकन क्‍या है साथ ही आंकलन और मूल्‍यांकन की परिभाषा , विशेषताऍ , प्रकार आवश्‍यकता , क्षेत्र  एवं महत्‍व को सभी के बारे में जानने वाले है वो भी बिल्‍कुल सरल भाषा में यदि आपको इन में से किसी भी टॉपिक में दिक्‍कत हो रही है तो आप इस पोस्‍ट में अंत तक जरूर पढ़े । 


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    आकलन और मूल्‍यांकन (assessment and evaluation) क्‍या है , परिभाषा , प्रकार , आवश्‍यकता , विशेषताऍ , क्षेत्र एवं अंतर
    आकलन और मूल्‍यांकन (assessment and evaluation) क्‍या है , परिभाषा , प्रकार , आवश्‍यकता , विशेषताऍ , क्षेत्र एवं अंतर 


    आकलन 


     आकलन का अर्थ – सूचनाओ को एकत्रित करना ।

    यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें छात्रो को बिना अंक अथवा ग्रेडिंग के फीडबैक दिया जाता है ताकि शैक्षिक उद्देश्‍यो की प्राप्ति में अंतिम मूल्‍यांकन (वार्षिक परीक्षा ) के पूर्व सुधार संभव हो सके ।

    आकलन की महत्‍व / आवश्‍यकत

    अध्‍यापन के पश्‍चात छात्रो की अधिगम क्षमता , रूचि, व्‍यक्तित्‍व आदि के बारे में जानकारी प्राप्‍त करने की तथा उनके अनुरूप पाठ्यक्रम निर्माण आदि के लिए आकलन की आवश्‍यकता पडती है 

      1.  विघार्थी के सन्‍दर्भ में आकलन की आवश्‍यकता
        1. छात्र क्‍या जानते है ।
        2. छात्रो की रूचियॉ कौन कौन सी है ।
        3. छात्रो की विशिष्‍ट आवश्‍यकताऍ क्‍या है ।
        4. छात्रो की योग्‍यता के अनुरूप पाठ्यक्रम चयन में
        5. कक्षा में छात्रो का उचित स्‍थान वर्गीकरण में ।
      2. अध्‍यापक हेतु
        1. छात्रो के कौशल, योग्‍यता तथा अधिगम क्षमता को पहचाने के लिए
        2. शिक्षण  विधि का चयन करने के लिए
        3. विघार्थियो की वैयक्तिक आवश्‍यकताओ को जानने के लिए
        4. शिक्षण सामग्री के विकास के लिए
      3. पाठ्यसहगामी क्रियाओ हेतु
        1. छात्रो की रूचि के अनुसार पाठ्यसहगामी क्रियाओ का वर्गीकरण करने के लिए ।
        2. कौन सा छात्र किस कार्यक्रम में अधिक उपयुक्‍त है ज्ञात कर रणनीति निर्माण के लिए 
        3. विघार्थियो की सांस्‍कृतिक , कलात्‍मक, रचनात्‍मक योग्‍यता को पहचानने के लिए
      4. परिवार के लिए
        1. अभिभावको को छात्र की प्रगति से अवगत कराने के लिए
        2. छात्रो की अधगिम क्षमता के बारे में जानकारी देने के लिए
        3. छात्र की समस्‍याओ से पालक को अवगत करने के लिए
        4. विघार्थियो गतिविधियो से सम्‍बधित जानकारी प्रदान करने के लिए । 


    आकलन के प्रकार

    आकलन के चार प्रकार होते है

      1. स्‍वयं आकलन – जब अपना आकलन बालक खुद या स्‍वयं के द्वारा करते है
      2. सहपाठी का सह-पाठी से आकलन – जब दो या दो से अधिक बच्‍च्‍े आपस मे एक दूसरे की कमियॉ या अच्‍छाइयॉ को बताते है 
      3. व्‍यक्तिगत आकलन – इस आकलन में अध्‍यापक के सामने एक ही बच्‍चा होता है उसी का आकलन किया जाता है
      4. समूह आकलन – इस आकलन में अध्‍यापक कुछ बच्‍चो को एक समूह बनाता है और उन्‍हे सामूहिक साझी जिम्‍मेदारी दे देता है 

    आकलन के विशेषताऍ

      1. विश्‍वसनीयता 
      2. वैधता 
      3. मानवीकरण 
      4. व्‍यावहारिकता 
      5. उपयोगिता 

    आकलन के क्षेत्र

    1. शैक्षिक उपलब्धियो का पता लगाने में
    2.  वैयक्तिक विभिन्‍नता ज्ञात करने में 
    3. स्‍थान निर्धारित करने में 
    4. गुणवत्ता का निर्धारण करने में 
    5. पूर्वानुमान लगाने मे 

    आकलन के रूप  

                आकलन मुख्‍यत: तीन रूपो में मापा जाता है –

      1. स्‍वयं आकलन 
      2. सहपाठी / सहयोगी समूह 
      3. ट्यूटर आकलन 

    अधिगम के लिए आकलन और अधिगम का आकलन में अंतर


    अधिगम के लिए आकलन 

    सीखने से पहले किया गया आकलन 

      1. बालको के शिक्षण में किसी प्रकार की समस्या होने से पहले उसे आकलित करके उसके अनुरूप अधिगम कराना
      2. यह आकलन निदानात्मक होता है
      3. अधिगम के लिए आकलन रचनात्मक भी होता है
      4. यह एक शिक्षण वर्ष में चार होते है
      5. अवलोकन , गृहकार्य , क्लास टेस् ,दत्त कार्य आदि से इस प्रकार का आकलन किया जाता है
      6. इसके द्वारा विघार्थियो का तुलनात्मक आकलन नही होता  बल्कि उनकी व्यक्तिगत कमियो ओर गुणो का आकलन होता है
      7. बालक की योग्यता का स्तर रूचि की पहचान करना
      8. शिक्षार्थियो की क्षमताओ की पहचान करना
      9. बालक की आवश्यकता के अनुसार विषय वस्तु का चयन
      10. शिक्षार्थी के अधिगम हेतु उचित शिक्षण विधि का चन करना
      11. बालक को पूर्व ज्ञान से जोड़कर प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा अधिगम कराना।
      12. निरन्तर अभ्यास


    अधिगम का आकलन 

     सीखने के बाद किया गया सीखने का आकलन 


      1. पूरे शिक्षण सत्र का अंत में किया आकलन अधिगम का आकलन होता है
      2. इस प्रकार के आकलन का उद्देश् अधिगम प्रगति और शैक्षिक उपलब्धि का आकलन होता है
      3. यह सकलनात्मक आकलन होता है जो सम्पूर्ण शिक्षण सत्र की समाप्ति के बाद किया जाता है
      4. यह आकलन शिक्षण सत्र में दो बार किया जाता है
      5. .इसका आकलन कोई भी कर सकता है अर्थात इसमें साक्षर या निरक्षर का कोई भेद नही हेाता  है
      6. इसमे वार्षिक परीक्षा के माध्यम से छात्र द्वारा किये गए अधिगम का आकलन किया जाता है
      7. बालक द्वारा सीखे गये कार्यो में हुई कमियो को जानने हेतु मूल्यांकन
      8. शिक्षण अधिगम में हुयी त्रुटियो में सुधार हेतु
      9. विषय वस्तु में सुधार हेतु
      10. भविष् हेतु नीति निर्माण

    मूल्‍यांकन का अर्थ

     मूल्‍यांकन दो शब्‍दो से मिल कर बना है     = मूल्‍य + अंकन

    अर्थ – ऑकना , निर्णय लेना या एक अनुभव के संबंध में निष्‍कर्ष निकालना आदि ।

      

     परिभाषा

    F    कोठारी आयोग

    मूल्‍यांकन एक सतत् प्रक्रिया है तथा शिक्षा की सम्‍पूर्ण प्रक्रिया का अभिन्‍न अंग है यह शिक्षा के उद्देश्‍यो से पूर्ण रूप से संबंधित है मूल्‍यांकन के द्वारा शैक्षिक उपलब्धि की ही जॉच नही की जाती बल्कि उसके सुधार में भी सहायता मिलती है ।

     

    F    गुड्स  -

    मूल्‍यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सही ढ़ंग से किसी वस्‍तु का मापन किया जा सकता है । 


    मूल्‍यांकन की विशेषताऍ 


      1. मूल्यांकन एक सतत् प्रक्रिया है
      2. मूल्यांकन निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है
      3. मूल्यांकन शिक्षण प्रक्रिया का अभिन् अंग है
      4. मूल्यांकन का संबंध छात्र की स्थिति से होकर छात्र के विकास से होता है
      5. मूल्यांकन एक सहयोगी कार्य है क्योकि इसमें छात्रो , शिक्षको , अभिभावको , सभी को सहयोग प्राप् किया जाता है
      6. मूल्यांकन केवल विघार्थी की शैक्षिक उपलब्धि का ही मापन नही करता है अपितु उसकी शैक्षिक उपलब्धि में सुधार करता है
      7. मूल्यांकन का क्षेत्र अत्यन् व्यापक है क्योकि इसमे विघार्थी के सभी पक्ष जाते है नैतिक , मानसिक , शारीरिक , सामाजिक एवं संवेगात्मक आदि
      8. मूल्यांकन का संबंध शिक्ष्ज्ञा के उद्देश्यो से होता है यह शिक्षा के उद्देश्यो की प्राप्ति की सीमा का निर्धारण करने वाली प्रक्रिया है
      9. मूल्यांकन द्वारा विघार्थियो के वांछित व्यवहारगत परिवर्तनो के संबंध में साक्षियो का संकलन किया जाता है
      10. छात्रो की व्यक्तिगत भिन्न्ता एवं सामूहिक आवश्यकताओ को पूरा करता है

    मूल्‍यांकन का महत्‍व

      1. मूल्यांकन द्वारा यह ज्ञात किया जाता है कि शिक्षण उद्देश्यो की प्राप्ति कहॉ तक हो सकी है
      2. मूल्यांकन द्वारा यह निश्चित किया जाता है कि किन विशिष् उद्देश्यो की प्राप्ति नही हो पायी है ताकि उपचारात्मक अनुदेशन दिया जाए।
      3. कक्षा में छात्रो का स्तरीकरण करने में भी मूल्याकंन महत्वपूर्ण प्रक्रिया मानी गयी है
      4. मूल्यांकन के आधार पर विघार्थियो की वैयक्तिगत भिन्नता को समझने में भी सहायता मिलती है
      5. मूल्यांकन पाठ्यक्रम के परिमार्जन एवं परिवर्तन में भी सहायक होता है
      6. मूल्यांकन शिक्षको एव छात्रो दोनो को ही पूनबर्लन तथा पृष् पोषण देने का कार्य करता है
      7. छात्रो की व्यक्तिगत भिन्नता एवं सामूहिक आवश्यकताओ को पूरा करना
      8. अध्यापक की शिक्षण कुशलता तथा सफलता की जॉच करना
      9. मूल्यांकन माप के अनेक दोषो को दूर करने में सहायक है

     


    हम में सीखा :- 

    इस पोस्‍ट में हम ने आकलन क्‍या है मूल्‍यांकन क्‍या है परिभाषा , प्रकार आवश्‍यकता , विशेषताऍ , क्षेत्र एवं अधिगम के लिए आंकलन एवं अधिगम का आंकलन में अंतर को समझा 

    आशा करता आपको यह पोस्‍ट अच्‍छी लगी होगी Comment बॉक्‍स में अपनी राह जरूर दे । 

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