इस पोस्ट मे हम जानने वाले है कि बाल विकास के सिद्धांत कौन कौन से है , इनका महत्व क्या है साथ ही यह भी जानेगें कि इन सिद्धांत की बालक के विकास में क्या आवश्यकता है । अगर आप बाल विकास के सिद्धांत PDF Download करना चाहते है तो हमारे telegram चैनल को join कर लीजिए
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बाल विकास के सिद्धांत
जब बालक विकास की एक अवस्था में दूसरी में प्रवेश करता है तब हम उसमें कुछ परिवर्तन देखते है ये परिवर्तन सिद्धांतों के अनुसार होते है इन्ही को विकास के सिद्धांत कहते है । जो निम्नलिखित है
निरन्तर विकास का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार विकास एक कभी न रूकने वाली प्रक्रिया है मॉ के गर्भ से यह प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है और मृत्युपर्यन्त चलती रहती है । तथा यह गति कभी तीव्र और कभी मन्द होती है
उदाहरण - प्रथम तीन वर्षो में बालक के विकास की प्रक्रिया बहुत तीव्र रहती है और उसके बाद हो मन्द जाती है
व्यक्तिगत विभिन्नताओं का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार बालको में पर्याप्त विभिन्नता देखने को मिलती है । अत: कोई भी एक बालक बुद्धि और विकास की दृष्टि से किसी अन्य बालक के समरूप नही होता । विकास के इसी सिद्धांत के कारण कोई बालक अत्यन्त मेघावी, कोई बालक सामान्य तथा कोई बालक पिछड़ा या मन्द होता है ।
वंशानुक्रम तथा वातावरण की अन्त:क्रिया का सिद्धांत
बालक का विकास वंशानुक्रम तथा वातावरण की परस्पर अत:क्रिया का परिणाम है केवल वंशानुक्र्रम अथवा केवल वातावरण बालक के विकास की दिशा व गति को निर्धारित नही करते है वरन् दोनों की अत:क्रिया के द्वारा विकास की दिशा व गति का नियंत्रण होता है ।
विकास सामान्य से विशेष की ओर चलता है
इस सिद्धांत के अनुसार विकास को सभी प्रक्रियाओं में चाहे वे शारीरिक या मानसिक हो बालक की प्रक्रियाएं पहले सामान्य होती है बाद में विशेष ।
उदाहरण - अपने हाथो से कुछ चीज पकडने से पहले बालक इधर से उधर यू ही हाथ मारने या फैलाने की चेष्टा करता है और उसके बाद वस्तुओं को पकड़ने का प्रयास करता है ।
एकीकरण का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार बालक पहले सम्पूर्ण अंग को और फिर अंग के भागो को चलाना सीखता है उसके बाद वह उन भागों में एकीकरण करना सीखता है
उदाहरण - वह पहले पूरे हाथ को ,फिर अंगुलियो को और फिर हाथ एवं अंगुलियों को एक साथ चलाना सीखता है ।
परस्पर संबंध का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार बालक के शारीरिक , मानसिक , सवेगात्मक आदि पहलुओं के विकास में परस्पर संबंध होता है
उदाहरण- जब बालक के शारीरिक विकास के साथ साथ उसकी रूचियों ध्यान के केन्द्रीकरण और व्यवहार में परिवर्तन होते है तब साथ साथ उमें गामक और भाषा संबंधी विकास भी होता है ।
विकास की दिशा का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार विकास सिर से पैर की ओर एक दिशा के रूप में होता है बालक का सिर पहले विकसित होता है और पैर उसके बाद में तथा यही बात उसके अंगो केनियंत्रण पर भी लागू होती है
उदाहरण - अपने जीवन के प्रथम सप्ताह में बालक केवल अपने सिर को उठा पाता है पहले 3 माह में वह अपने नेत्रो की गति पर नियंत्रण करना सीख जाता है 6 माह में वह पने हाथों की गतियों पर अधिकार कर लेता है 9 माह मे वह सहारा लेकर बैठने लगता है 12 माह में वह स्वयं बैठने और घिसट कर चलने लगता है
समान प्रतिमान का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक जाति चाहे वह पशुजाति हो या मानवजाति , अपनी , जाति के अनुरूप विकास के प्रतिमान का अनुसरण करती है ।
उदाहरण- संसार के प्रत्येक भाग में मानव जाति के शिशुओ के विकास का प्रतिमान एक ही है और उसमें किसी प्रकार का अंतर होना संभव नही है ।
विकास की विभिन्न गति का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार विभिन्न व्यक्तियों के विकास की गति में विभिन्नता होती हे और यह विभिन्नता विकास के सम्पूर्ण काल में यथावत् बनी रहती है ।
उदाहरण - जो व्यक्ति जन्म के समय लम्बा होता है वह साधारणत: बड़ा होने पर भी लम्बा रहता है और जो छोटा होता है वह साधारत: छोटा रहता है ।
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हम ने सीखा : इस पोस्ट में हम ने बाल विकास के सिद्धांतों के बारे में जाना तथा उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास भी किया आशा करता हॅू । कि आप सभी को यह बाल विकास के सिद्धांतो वाला टॉपिक अच्छे से समझ आया होगा ।
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