बाल केन्द्रित शिक्षा एवं प्रगतिशील शिक्षा : आज की पोस्ट में हम आप सभी को बाल केन्द्रित शिक्षा एवं प्रगतिशील शिक्षा के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है जिसमें आप को बाल केन्द्रित शिक्षा का अर्थ प्रगतिशील शिक्षा का अर्थ एवं सिद्धांत , महत्व एवं स्वरूप को विस्तार से समझने का प्रयास करेगे । आशा करता हॅू । कि आप इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ेगे । CTET /MPTET/UPTET/STAT/HTET/2021-22
बाल केन्द्रित शिक्षा क्या है ?
पूर्व में शिक्षक केन्द्रित शिक्षा का उद्देश्य बालक के खाली मस्तिष्क में शिक्षा का प्रसार करना मात्र था । बालकेन्द्रित शिक्षा में शिक्षा का केन्द्र बिन्दु बालक होता है इस शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत बालक की रूचियों , प्रवृत्तियों तथा क्षमताओ को ध्यान में रखकर व्यक्तिगत शिक्षण को महत्व दिया जाता है ।
इसमें बालक का व्यक्तिगत निरीक्षण कर उसकी दैनिक कठिनाईयो को दूर करने की चेष्ठा की जाती है तथा बालक को स्वावलम्बी बना कर उसमें स्वतंत्रता की भावना पैद की जाती है ।
बालकेन्द्रित शिक्षा पूर्णत: मनोवैज्ञानिक है जिसका मुख्य उद्देश्य बालक का चहुमुखी (सर्वागीण ) विकास करना है अन्तर्गत बालक की रूचियो प्रवृत्तियो तथा क्षमतओ को ध्यान में रखकर ही सम्पूर्ण शिक्षा का आयोजन किया जाता है ।
बाल केन्द्रित शिक्षण के सिद्धांत
- क्रियाशीलता का सिद्धांत - कोई भी कार्य करने में बालक के शारीरिक अंग जैसे हाथ पैर व मस्तिष्क सभी क्रियाशील होते है मतलब बालक की एक से अधिक ज्ञानन्द्रियॉं का प्रयोग होने से उसके अधिगम में अत्यधिक प्रभाव पडता है ।
- प्रेरणा का सिद्धांत - कहानी , नाटक , आदि के माध्यम से बालक को प्रभावित करते रहना चाहिए ताकि बालक इन महापुरूषो तथा वैज्ञानिक के माध्यम से प्रेरित होता रहें ।
- रूचि का सिद्धांत - बालक की रूचि के अनुसार उसे शिक्षा देनी चाहिए क्योकि बालक की रूचि ही उसे उसके कार्य को करने में प्रेरित करती है ।
- निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत - वर्तमान समय में छात्रो को जो शिक्षा प्रदान की जा रही है वह बालको के निश्चित उद्देश्यो को पूरा करने वाली होनी चाहिए ताकि बालको को उचित समय में सफलता प्राप्त हो सके ।
- चयन का सिद्धांत - बालको को उनके रूचि के हिसाब से अध्ययन करवाना चाहिए ताकि बालक अपनी योग्यता के अनुसार विषय वस्तु का चयन करना चाहिए ।
- व्यक्तिगत विभिन्नताओ का सिद्धांत -प्रत्येक छात्र की बुद्धि लब्धी अलग अलग होती है अत: अध्यापन के समय हमें उसकी इस विभिन्नता का ध्यान रखना चाहिए ।
- लोकतांत्रिय सिद्धांत - हमारे लिए कक्षा में सभी विद्यार्थी समान है सभी से समान रूप से प्रश्न पूछने चाहिए तथा अधपक को छात्रो से कभी भेद भाव नही रखना चाहिए अन्यथा: छात्रो में एक दूसरे के प्रति प्यार व सम्मान नही रहेगा ।
- विभाजन का सिद्धांत - शिक्षक के द्वारा जो पढाया जाए हिस्सो में बॉट कर पढ़ाया जाए । अर्थात विश्लेषण से संश्लेषण की ओर विधि को अपनाना चाहिए ।
- पुनरावृत्ति का सिद्धांत / आवृत्ति का सिद्धांत - पुनरावृत्ति कराने से ज्ञान स्थाई होता है अत: अभ्यास प्रश्नो के जरिए पढाऍ गए अध्याय का पुनरावृत्ति जरूर करना चाहिए ।
- निर्माण व मनोरंजन का सिद्धांत - कक्षा में हस्त कला एवं रचनात्मक कार्य भी करवाए जाने चाहिए । इन कार्यो से बालक में स्वाध्ययन करने की इच्छा उत्पन्न होती है ।
बाल केन्द्रित शिक्षा के अन्तर्गत पाठ्यक्रम का स्वरूप
- पाठ्यक्रम का लचीलापन ।
- वातावरण के अनुकूल ।
- पाठ्यम जीवनोपयोगी हो ।
- पाठ्यक्रम पूर्वज्ञान पर आधारित हो ।
- क्रियाशीलता के सिद्धांत के हिसाब से होना चाहिए ।
- पाठ्यक्रम छात्रो की रूचि के मुताबिक होना चाहिए ।
- पाठ्यक्रम बालको के बौद्धिक स्तर के अनुसार होना चाहिए
- पाठ्यक्रम में व्यक्तिगत विभिन्नताओ का विशेष ध्यान रखना चाहिए
- पाठ्यक्रम राष्ट्रीय भावनाओ को विकसित करे ऐसा होना चाहिए
- पाठ्यक्रम समाज की आवयश्यकता की पूर्ति के अनुसार होना चाहिए
बाल केन्द्रित शिक्षा का महत्व -
बाल केन्द्रित शिक्षा में शिक्षक की भूमिका -
प्रगतिशील शिक्षा क्या है ?
- रूचि
- प्रयास
प्रगतिशील शिक्षा के सिद्धांत -
- मस्तिष्क का सिद्धांत एवं बुद्धि का सिद्धांत - मस्तिष्क एवं बुद्धि मनुष्य की उन क्रियायो के परिणाम है जो व्यौहारिक या सामाजिक -समस्याओ को सुलझाने के फलस्वरूप तैयार होता है । ज्यौ-ज्यौ वह जीवन की दैनिक क्रियाओ को करने में मानसिक शक्तियो का प्रयोग करता है त्यौ-त्यौ उसका विकास भी होता जाता है ।
- चिंतन् की प्रक्रिया का सिद्धांत - चिंतन केवल मनन करने से पूर्ण नही होता और ना ही भावना समूह से इसकी उत्पत्ति होती है चिंतन का कुछ कारण जरूर होता है किसी हेतु के आधार पर ही मनुष्य सोचना प्रारंभ करता है यदि मनुष्य की क्रिया सरलतापूर्वक चलती रहती है तो उसे सोचने की आवश्यकता ही नही पडती किंतु जब उसकी प्रगति में बाधा पड़ती है तो वह सोचने के लिए बाघ्य हो जाता है ।
- ज्ञान का सिद्धांत - ज्ञान कर्म का ही परिणाम है कर्म अनुभव से पूर्व आता है । तथा अनुभव ज्ञान का स्त्रोत हे जिसे प्रकार बालक अनुभव से यह समझता है कि अग्नि हाथ जला देती है उसी प्रकार उसका सम्पूर्ण ज्ञान अनुभव पर आधारित होता है
प्रगतिशील शिक्षा का महत्व
- बालको की रूचि को ध्यान में रखकर उनका निर्देशन करना चाहिए ।
- बालको को स्वयं करके सीखने पर बल दिया जाना चाहिए ।
- प्रगति शिक्षा के अंतर्गत अनुशासन बनाए रखने के लिए बालको की स्वाभाविक प्रवृत्तियों को दबाना नही चाहिए ।
- बालक के व्यक्तित्व का विकास बेहतर हो ताकि शिक्षा के द्वारा जनतान्त्रिक मूल्यों की स्थापना की जा सके ।
- प्रगतिशील शिक्षा के उद्देश्य बालको का विकास करना है